बुद्ध पूर्णिमा पर निबंध || Essay on Buddha Purnima in Hindi

बुद्ध पूर्णिमा पर निबंध || Essay on Buddha Purnima in Hindi

बुद्ध पूर्णिमा पर लेख 

प्रस्तावना

बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बुद्ध पूर्णिमा सबसे बड़ा उत्सव होता है। हिंदू धर्म के लोगों के लिए भी यह पर्व काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। बौद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म के महान संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध के जन्मदिन के अवसर पर मनाया जाता है। गौतम बुद्ध महानतम आध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे। इनके अनुसार जैसे–मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती, ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी आध्यात्मिक जीवन के बिना नहीं जी सकता। गौतम बुद्ध भगवान विष्णु के नौवें अवतार माने जाते हैं। इन्होंने संपूर्ण विश्व को करुणा और सहिष्णुता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उनके द्वारा दिए गए उपदेश संदेश और विचार मनुष्य के जीवन के लिए आवश्यक है।

गौतम बुद्ध की जीवनी

बुध पूर्णिमा वैशाख महीने की अमावस्या को मनाई जाती है। बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध के सम्मान में मनाया जाता है। यह त्यौहार बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के लिए महत्वपूर्ण है। इस त्यौहार को महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। बौद्ध पूर्णिमा के दिन घरों को फूलों से सजाया जाता है तथा घरों में दिए जलाए जाते हैं। गौतम बुध का जन्म छठी शताब्दी 563 ईसा पूर्व में नेपाल के तराई में लुंबिनी नामक स्थान में हुआ था। भगवान बुद्ध बनने से पहले वे साधारण मनुष्य थे, उन्हें सिद्धार्थ कहा जाता था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन और मां का नाम महामाया देवी था। जो सिद्धार्थ के जन्म के तुरंत बाद मर गई। 16 वर्ष की उम्र में ही सिद्धार्थ का विवाह दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ हुआ। सिद्धार्थ के पिता ने उनके लिए भोग विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया। तीन ऋतुओं में रहने के लायक तीन सुंदर महल बनवा दिया। उस महल में नाच– गाना और मनोरंजन की सारी सामग्री उपलब्ध करा दी गई। महल में दास–दासी उनके सेवा में रख दिए गए। पर यह सब चीजें सिद्धार्थ को सांसारिक जीवन में बांधकर नहीं रख सकीं। वे किसी का दर्द नहीं देख पाते थे। उनके पिता उन्हें संसार के सारे विलासिताओं में लगा कर रखना चाहते थे। फिर भी उनका मन सांसारिक मोह-माया में नहीं लग रहा था। वे अत्यंत ही दयालु थे। उन्हें निर्दोष प्राणियों की हत्या करना पसंद नहीं था। इसीलिए एक बार उन्होंने एक हंस की जान बचाई जिससे उनके चचेरे भाई देवव्रत ने अपने वाणो से घायल कर दिया था। वह अपना पूरा समय अकेले चिंतन करने में व्यतीत किया करते थे।

सत्य और परम ज्ञान की खोज

 गौतम बुद्ध जीवन और मृत्यु के सवालों पर विचार करते रहते थे। उन्होंने अपने जीवन में तीन व्यक्ति को देखा जिनके कारण उनका हृदय परिवर्तित हो गया। वह वृद्धावस्था, मृतक, बीमार शरीर और गरीबी को देखकर परेशान थे। उनके मन में मनुष्य के जीवन और मृत्यु से संबंधित कई सवालों के जवाब जानना चाहते थे।

इसीलिए उन्होंने अपना सांसारिक जीवन छोड़ने का फैसला किया। एक अंधेरी रात वे अपनी पत्नी और अपने बेटे राहुल को अकेला सोता छोड़कर, गौतम अपना सांसारिक जीवन त्याग और ज्ञान प्राप्ति के लिए जंगल में चल पड़े। उस समय उनकी आयु केवल 29 वर्ष थी। गौतम सत्य और परम ज्ञान पाना चाहते थे। अपने पांच विद्यार्थियों के साथ वह जंगल में गए। लेकिन उन्हें शांति नहीं मिली।

राजकुमार सिद्धार्थ गौतम बुद्ध कैसे बने ?

सिद्धार्थ दयालु और दार्शनिक प्रवृत्ति के थे। वे जिज्ञासु तथा सहानुभूति सहज स्वभाव का जनप्रिय व्यक्ति थे। उन्होंने सत्य और ज्ञान की खोज जारी रखा। सत्य की खोज और ज्ञान प्राप्ति के मार्ग में उन्हें कई बाधाओं को पार करना पड़ा। एक दिन वह ध्यान करने के लिए "बोधि वृक्ष"के नीचे बैठ गए। उन्होंने वहां ध्यान लगाया। उसी वृक्ष के नीचे उन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई। वे जीवन और मृत्यु के रहस्य को समझ पाए। और उन्होंने दुनिया को सत्य और अहिंसा की शिक्षा दी। "तब से उन्हें बुद्ध के रूप में जाना जाने लगा।"

बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है ?

अपने त्याग, बलिदान और कठोर परिश्रम के बल पर गौतम बुध को ज्ञान प्राप्त हुआ। और राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान गौतम बुद्ध की उपाधि प्राप्त हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य और अहिंसा की शिक्षा दी। उनके अनुसार मनुष्य की इच्छाएं उसकी सभी परेशानियों का मूल कारण है। इसीलिए व्यक्ति को उससे दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए। वे बौद्ध धर्म के‌ महान संस्थापक थे। लगभग 35 वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ गौतम को बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई। और सिद्धार्थ भगवान गौतम बुद्ध बन गए।

उन्होंने लोगों को शांतिपूर्ण, संतुष्ट और सुखी जीवन जीने की सलाह दी। कहा जाता है, कि गौतम बुध को ज्ञान की प्राप्ति वैशाख मास की पूर्णिमा को हुई थी। इसीलिए बौद्ध धर्म के अनुयायियों तथा हिंदुओं के लिए वैशाख पूर्णिमा का दिन पवित्र माना जाता है। लोग अपने घरों को फूलों से सजाते हैं। घरों में दीपक जलाते हैं, तथा पवित्र गंगा स्नान करते हैं। और हर साल वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाते है।

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