भगवान बुद्धा का जीवन परिचय/जीवनी || Biography of God Buddha
परिचय
भगवान गौतम बुद्ध को "सिद्धार्थ" के नाम से भी जाना जाता है। "गौतम बुध महानता अध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे।" जिन्होंने अपने उच्च विचार से संपूर्ण संसार को सत्य के मार्ग चलना सिखाया। गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तक और एक अच्छे समाज सुधारक थे। गौतम बुध का जन्म छठी शताब्दी 563 ईसा पूर्व में नेपाल के "तराई" में स्थित "लुंबिनी" नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम "नरेश शुद्धोधन" और मां का नाम "महामाया" था। जो सिद्धार्थ के जन्म के ही पश्चात मर गई।
सत्य और परम ज्ञान की खोज
"भगवान बुध बनने से पहले वे साधारण मनुष्य थे।"
उन्हें सिद्धार्थ कहा जाता था। सिद्धार्थ का विवाह 16 वर्ष की उम्र में "दंडपाणि शाक्य" की कन्या "यशोधरा" के साथ हुआ। सिद्धार्थ के पिता ने उनके लिए भोग विलास पूरा प्रबंधक कर दिया। तीन ऋतुओं में रहने योग तीन सुंदर महल बनवा दिया। महल में नाच-गाना और मनोरंजन की सारी सामग्री उपलब्ध करा दी गई। महल में दास-दासी उनके सेवा में रख दिए गए। पर यह सारी सामग्री सिद्धार्थ को सांसारिक जीवन में बांधकर नहीं रख सकीं।
बचपन से ही उनका मन भोग विलास में नहीं लगता था। वे किसी का दुख दर्द देकर भावुक हो जाते थे।
गौतम बुद्ध मानव "जीवन और मृत्यु" के सवालों पर विचार करते रहते थे। उन्होंने अपने जीवन में तीन व्यक्ति को देखा जिनके कारण उनका हृदय परिवर्तित हो गया। वे वृद्धावस्था, मृतक, बीमार शरीर और गरीबी को देखकर भावुक हो गए थे। उनके मन में मनुष्य के जीवन और मृत्यु से संबंधित कई सवाल उपस्थित हो रहे थे। इन सवालों का जवाब जानने के लिए उन्होंने अपना सांसारिक जीवन छोड़ने का फैसला किया। एक अंधेरी रात वे अपनी पत्नी और अपने बेटे "राहुल" को सोता छोड़कर, गौतम अपना सांसारिक जीवन त्याग कर ज्ञान प्राप्ति हेतु जंगल की ओर चल पड़े। उस समय वह केवल 29 वर्ष के थे। गौतम बुद्ध सत्य और परम ज्ञान पाना चाहते थे। अपने पांच विद्यार्थियों के साथ वह जंगल में गए। लेकिन उन्हें शांति नहीं मिली। सत्य की खोज और परम ज्ञान की प्राप्ति के मार्ग में उन्हें कई प्रकार के बाधाओं का सामना करना पड़ा। एक दिन वह ध्यान करने के लिए "बोधि वृक्ष" के नीचे बैठ गए। उसी वृक्ष के नीचे उन्हें "सत्य और आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई।
वे जीवन की सत्यता को समझ पाए। और उन्होंने दुनिया को सत्य और अहिंसा की शिक्षा से अवगत कराया।
राजकुमार सिद्धार्थ, भगवान गौतम बुध कैसे बने
सिद्धार्थ दयालु और दार्शनिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। वे जिज्ञासु तथा सहानुभूति सहज स्वभाव के जनप्रिय व्यक्ति थे। उन्होंने अपने सत्य और ज्ञान की खोज को जारी रखा। सत्य की खोज और ज्ञान प्राप्ति के मार्ग में उन्हें कई प्रकार के बाधाओं को पार करना पड़ा। एक दिन वह ध्यान करने के लिए बोधि वृक्ष के नीचे बैठ गए। उन्होंने वहां ध्यान लगाया। अपने जीवन में कठोर परिश्रम करने के बाद बोधी वृक्ष के नीचे उन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई। वे जीवन और मृत्यु के रहस्य को समझ पाए। और उन्होंने दुनिया को सत्य और अहिंसा की शिक्षा दी। साथ ही वे बौद्ध धर्म के महान प्रवर्तक थे। तब से उन्हें राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान गौतम बुद्ध के रूप में जाना जाने लगा।
गौतम बुध की शिक्षा
भगवान गौतम बुद्ध का संबंध क्षत्रिय परिवार से था। गुरु विश्वामित्र के द्वारा सिद्धार्थ को शिक्षा प्राप्त हुई। गुरु विश्वामित्र ने सिद्धार्थ को वेद और उपनिवेश शिक्षा के साथ-साथ "युद्ध विद्या" भी प्राप्त करवाई थी। इसके अलावा घुड़सवारी, धनुष बाण एवं रथ हांकने की शिक्षा भी प्राप्त कराई थी।
गौतम बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति
गौतम बुध स्वभाव से जिज्ञासु तथा सहानुभूति प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उन्होंने परम सत्य और ज्ञान प्राप्ति हेतु कठोर परिश्रम किए। 29 वर्ष की उम्र में अपने सांसारिक भोग विलास को छोड़कर परम सत्य और ज्ञान प्राप्ति के लिए बोधगया के पास के एक जंगल में पहुंचे। उन्होंने उस जंगल में लगभग 6 वर्ष तक कठिन तपस्या की, अपने त्याग, बलिदान और कठोर परिश्रम के बल पर ही गौतम बुध को ज्ञान प्राप्त हुआ। गौतम बुध बौद्ध धर्म के महान संस्थापक थे। लगभग 35 वर्ष की उम्र में पूर्णिमा की रात को सिद्धार्थ गौतम को बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे आत्माज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उन्होंने लोगों को शांतिपूर्ण, संतुष्ट और सुखी जीवन के लिए प्रेरित किया।
गौतम बुद्ध का उपदेश
भगवान गौतम बुद्ध ने अपने जीवन में संसार को बहुत से उद्देश्य दिए। गौतम बुद्ध के महा संस्थापक थे। उन्होंने सबसे पहले सारनाथ में अपने ही 5 मित्रों को अपना अनुयाई बनाया और उन्हें उपदेश देने के पश्चात धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए भेज दिया। इसके अलावा मानव जीवन में पड़ने वाले दुःखों एवं कष्टों के निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग बतलाया। गौतम बुध का मानना था कि मानव दुख का सबसे बड़ा कारण उसकी इच्छाएं हैं।
"भगवान गौतम बुध के अनुसार होस्ट और गायत्री मंत्र का प्रचार-प्रसाद किया जाना ही किसी भी मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति करवाता हैं।" मानव को अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये सबसे सरल मार्ग मध्यम मार्ग का अनुसरण करना होता है। गौतम बुध के अनुसार सफलता का मार्ग प्राप्ति करने के लिए "ध्यान" करना आवश्यक है। भगवान गौतम बुद्ध ने अपने जीवन में बहुत ही कठोर परिश्रम, त्याग, बलिदान किए।
गौतम बुद्ध के जीवन का अंतिम क्षण
गौतम बुध की मृत्यु 80 वर्ष की उम्र में लगभग 443 वर्ष पूर्व हुआ था। वे अपने शरीर को त्याग और परमात्मा में विलीन हो गये। गौतम बुद्ध ने सदैव से ही अपना संपूर्ण जीवन केवल मानव कल्याण के लिए उपयोग किया। भगवान गौतम बुध के अनुसार किसी मनुष्य को अपने ज्ञान को केवल अपने तक ही सीमित न रखकर अन्य व्यक्तियों तक भी पहुंचाना चाहिए।
निष्कर्ष
दोस्तों, आज के इस लेख में महात्मा बुद्ध के जीवन परिचय के माध्यम से हमने आपको भगवान गौतम बुद्ध के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कराई है। साथ ही भगवान गौतम बुद्ध के जीवन के महत्वपूर्ण कथन से अवगत कराया है।
उम्मीद करते हैं कि यह लेख महात्मा बुद्ध की जीवनी आपको अवश्य ही पसंद आयी होगी।
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परिचय
भगवान गौतम बुद्ध को "सिद्धार्थ" के नाम से भी जाना जाता है। "गौतम बुध महानता अध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे।" जिन्होंने अपने उच्च विचार से संपूर्ण संसार को सत्य के मार्ग चलना सिखाया। गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तक और एक अच्छे समाज सुधारक थे। गौतम बुध का जन्म छठी शताब्दी 563 ईसा पूर्व में नेपाल के "तराई" में स्थित "लुंबिनी" नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम "नरेश शुद्धोधन" और मां का नाम "महामाया" था। जो सिद्धार्थ के जन्म के ही पश्चात मर गई।
सत्य और परम ज्ञान की खोज
"भगवान बुध बनने से पहले वे साधारण मनुष्य थे।"
उन्हें सिद्धार्थ कहा जाता था। सिद्धार्थ का विवाह 16 वर्ष की उम्र में "दंडपाणि शाक्य" की कन्या "यशोधरा" के साथ हुआ। सिद्धार्थ के पिता ने उनके लिए भोग विलास पूरा प्रबंधक कर दिया। तीन ऋतुओं में रहने योग तीन सुंदर महल बनवा दिया। महल में नाच-गाना और मनोरंजन की सारी सामग्री उपलब्ध करा दी गई। महल में दास-दासी उनके सेवा में रख दिए गए। पर यह सारी सामग्री सिद्धार्थ को सांसारिक जीवन में बांधकर नहीं रख सकीं।
बचपन से ही उनका मन भोग विलास में नहीं लगता था। वे किसी का दुख दर्द देकर भावुक हो जाते थे।
गौतम बुद्ध मानव "जीवन और मृत्यु" के सवालों पर विचार करते रहते थे। उन्होंने अपने जीवन में तीन व्यक्ति को देखा जिनके कारण उनका हृदय परिवर्तित हो गया। वे वृद्धावस्था, मृतक, बीमार शरीर और गरीबी को देखकर भावुक हो गए थे। उनके मन में मनुष्य के जीवन और मृत्यु से संबंधित कई सवाल उपस्थित हो रहे थे। इन सवालों का जवाब जानने के लिए उन्होंने अपना सांसारिक जीवन छोड़ने का फैसला किया। एक अंधेरी रात वे अपनी पत्नी और अपने बेटे "राहुल" को सोता छोड़कर, गौतम अपना सांसारिक जीवन त्याग कर ज्ञान प्राप्ति हेतु जंगल की ओर चल पड़े। उस समय वह केवल 29 वर्ष के थे। गौतम बुद्ध सत्य और परम ज्ञान पाना चाहते थे। अपने पांच विद्यार्थियों के साथ वह जंगल में गए। लेकिन उन्हें शांति नहीं मिली। सत्य की खोज और परम ज्ञान की प्राप्ति के मार्ग में उन्हें कई प्रकार के बाधाओं का सामना करना पड़ा। एक दिन वह ध्यान करने के लिए "बोधि वृक्ष" के नीचे बैठ गए। उसी वृक्ष के नीचे उन्हें "सत्य और आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई।
वे जीवन की सत्यता को समझ पाए। और उन्होंने दुनिया को सत्य और अहिंसा की शिक्षा से अवगत कराया।
राजकुमार सिद्धार्थ, भगवान गौतम बुध कैसे बने
सिद्धार्थ दयालु और दार्शनिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। वे जिज्ञासु तथा सहानुभूति सहज स्वभाव के जनप्रिय व्यक्ति थे। उन्होंने अपने सत्य और ज्ञान की खोज को जारी रखा। सत्य की खोज और ज्ञान प्राप्ति के मार्ग में उन्हें कई प्रकार के बाधाओं को पार करना पड़ा। एक दिन वह ध्यान करने के लिए बोधि वृक्ष के नीचे बैठ गए। उन्होंने वहां ध्यान लगाया। अपने जीवन में कठोर परिश्रम करने के बाद बोधी वृक्ष के नीचे उन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई। वे जीवन और मृत्यु के रहस्य को समझ पाए। और उन्होंने दुनिया को सत्य और अहिंसा की शिक्षा दी। साथ ही वे बौद्ध धर्म के महान प्रवर्तक थे। तब से उन्हें राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान गौतम बुद्ध के रूप में जाना जाने लगा।
गौतम बुध की शिक्षा
भगवान गौतम बुद्ध का संबंध क्षत्रिय परिवार से था। गुरु विश्वामित्र के द्वारा सिद्धार्थ को शिक्षा प्राप्त हुई। गुरु विश्वामित्र ने सिद्धार्थ को वेद और उपनिवेश शिक्षा के साथ-साथ "युद्ध विद्या" भी प्राप्त करवाई थी। इसके अलावा घुड़सवारी, धनुष बाण एवं रथ हांकने की शिक्षा भी प्राप्त कराई थी।
गौतम बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति
गौतम बुध स्वभाव से जिज्ञासु तथा सहानुभूति प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उन्होंने परम सत्य और ज्ञान प्राप्ति हेतु कठोर परिश्रम किए। 29 वर्ष की उम्र में अपने सांसारिक भोग विलास को छोड़कर परम सत्य और ज्ञान प्राप्ति के लिए बोधगया के पास के एक जंगल में पहुंचे। उन्होंने उस जंगल में लगभग 6 वर्ष तक कठिन तपस्या की, अपने त्याग, बलिदान और कठोर परिश्रम के बल पर ही गौतम बुध को ज्ञान प्राप्त हुआ। गौतम बुध बौद्ध धर्म के महान संस्थापक थे। लगभग 35 वर्ष की उम्र में पूर्णिमा की रात को सिद्धार्थ गौतम को बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे आत्माज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उन्होंने लोगों को शांतिपूर्ण, संतुष्ट और सुखी जीवन के लिए प्रेरित किया।
गौतम बुद्ध का उपदेश
भगवान गौतम बुद्ध ने अपने जीवन में संसार को बहुत से उद्देश्य दिए। गौतम बुद्ध के महा संस्थापक थे। उन्होंने सबसे पहले सारनाथ में अपने ही 5 मित्रों को अपना अनुयाई बनाया और उन्हें उपदेश देने के पश्चात धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए भेज दिया। इसके अलावा मानव जीवन में पड़ने वाले दुःखों एवं कष्टों के निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग बतलाया। गौतम बुध का मानना था कि मानव दुख का सबसे बड़ा कारण उसकी इच्छाएं हैं।
"भगवान गौतम बुध के अनुसार होस्ट और गायत्री मंत्र का प्रचार-प्रसाद किया जाना ही किसी भी मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति करवाता हैं।" मानव को अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये सबसे सरल मार्ग मध्यम मार्ग का अनुसरण करना होता है। गौतम बुध के अनुसार सफलता का मार्ग प्राप्ति करने के लिए "ध्यान" करना आवश्यक है। भगवान गौतम बुद्ध ने अपने जीवन में बहुत ही कठोर परिश्रम, त्याग, बलिदान किए।
गौतम बुद्ध के जीवन का अंतिम क्षण
गौतम बुध की मृत्यु 80 वर्ष की उम्र में लगभग 443 वर्ष पूर्व हुआ था। वे अपने शरीर को त्याग और परमात्मा में विलीन हो गये। गौतम बुद्ध ने सदैव से ही अपना संपूर्ण जीवन केवल मानव कल्याण के लिए उपयोग किया। भगवान गौतम बुध के अनुसार किसी मनुष्य को अपने ज्ञान को केवल अपने तक ही सीमित न रखकर अन्य व्यक्तियों तक भी पहुंचाना चाहिए।
निष्कर्ष
दोस्तों, आज के इस लेख में महात्मा बुद्ध के जीवन परिचय के माध्यम से हमने आपको भगवान गौतम बुद्ध के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कराई है। साथ ही भगवान गौतम बुद्ध के जीवन के महत्वपूर्ण कथन से अवगत कराया है।
उम्मीद करते हैं कि यह लेख महात्मा बुद्ध की जीवनी आपको अवश्य ही पसंद आयी होगी।
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